मंगलवार, 19 दिसंबर 2017

हम शर्मिंदा हैं निर्भया

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हम शर्मिंदा हैं निर्भया
कि हम पुरुष हैं
कि हम तलाशते रहते हैं 
किसी भी समय बलात्कार की सम्भावनाएँ
ज़रूरी नहीं कि जिस्म से ही
देखकर, सुनकर, सूंघकर भी
कोशिशें करते रहते हैं बलात्कार की
जरुरी नहीं कि हम जिस्मानी तौर पर
पूर्ण पुरुष हों लेकिन
कहीं भी, यूँ ही, स्खलित होने के
चूकना नहीं चाहते अवसर
हम शर्मिंदा हैं निर्भया
कि हम बड़े शातिर हैं
कभी भाई, कभी बाप, कभी चाचा-मामा
कभी डॉक्टर, तो कभी अध्यापक की आड़ लेकर
खोजते रहते हैं बेबस शिकार
हमने मछली कहा तुम्हें
और चारा डाल कर पकड़ लिया, यूं
कभी चिड़िया कहा
और दाना डाल कर पकड़ लिया, यूं
हिरनी कहा और दौड़ा कर शिकार कर लिया
हम शर्मिंदा हैं निर्भया
कि अपनी बच्चियों की हिफाज़त के लिए
हम रहते हैं बड़े चौकन्ने
कि उन्हें गड़ने न पाए काँटा भी
लेकिन निर्भया,
केवल अपनी बच्चियों के लिए ही
रहते हैं सतर्क और लेना नहीं चाहते
तनिक भी रिस्क...
क्योंकि हमें मालूम हैं
हम नहीं तो कोई और पुरुष
घूमता रहता है हर समय
एक कोमल शिकार के लिए.....

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