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Friday, March 23, 2018

नगर के बीच घर अपना...




नगर के बीच घर है अपना
लेकिन अब उस घर में घुसने से डरता हूँ
जो हमारा घर हुआ करता है
इस घर के बाहरी गेट से लेकर अन्दर आलमारियों तक की
सभी चाभियाँ हैं हैण्ड-बैग में
मुझे मालूम है कि ये मेरा ही घर है
मेरा अपना घर
इस घर में मेरी नाल गड़ी है
इसमें जब चाहूँ घुस सकता हूँ
जब चाहे निकल सकता हूँ
मेरी मर्ज़ी इसमें चाहे हमेशा के लिए बस जाऊं
या कि ऐसे ही लावारिस पड़ा रहने दूँ
किसी को क्या फर्क पड़ता है
लेकिन फिर भी जाने क्यों
उस घर में जाने से शरमाता हूँ, डरता हूँ


नगर के बीच घर होना
कितना होता है महत्वपूर्ण
यह बताया करते थे पिता
कोई सामान इकट्ठा करके रखने की जरूरत नहीं
जब जी चाहा खट से गए पट से ले आये
दूध, फल, सब्जी, दवा, जलेबी, समोसा
और तब घर इतने अधिक दरवाजों और तालों वाला भी नहीं था
गली से आंगन तक बेरोक-टोक आ-जा सकता था कोई भी
फटकी वाली रसोई में भी कोई खटका नहीं
बस, सोने वाले कमरे पर जर्जर दरवाज़ा
जिस पर कभी-कभार ही लटक पाता एक सस्ता ताला
( जिसे बचपन में बहनों की हेयर-क्लिप खोल लिया करता था)


जब यह छोटा सा घर था तब बहुत से लोग बसते थे यहाँ
अब यह मकान है, इसीलिए सुनसान है
अम्मी कहाँ चाहती थीं कि मेहमान अपने तय समय पर लौट पाए
अरे, आज भर और रुक जाइए!
अभी आपने मेरे हाथों की मछली कहाँ खाई है
ऐसे ही कई दिन और रुक जाते थे मेहमान
पैसे की तंगी में आत्मीयता की आंच रहती है
सुख-सुविधाएँ अतिथि बर्दाश्त नहीं कर पातीं
वही घर अब कई वीरान कमरों का मकबरा सा है
कोई आहट नहीं, कोई खुशबु नहीं
ड्राइंग रूम की दीवाल घड़ी बंद पड़ी है
अब्बा की मौजूदगी के सन्नाटे में इस घडी के कांटे की टिक-टिक
किसी हथौड़े के चोट की तरह बजती रहती थी
अब इन घड़ियों की टिक-टिक कहाँ सुनाई देती है
इतना शोर है, इतनी आवाजें हैं इतनी व्यग्रता और बेचैनियाँ हैं
कि इंसान जैसे बहरा होता जा रहा है

अम्मी के न रहने पर घर पर वीरानी ने डेरा जमा लिया था
अब्बा कुछ दिन अकेले ही अकड़ में जीते रहे
लेकिन बुढ़ापा सहारा खोजता है और सहारे आज़ादी छीन लेते हैं
अब्बा बेटे-बेटियों के घर पारा-पारी दिन गुज़ारने को अभिशप्त हो गये
और नगर के ह्रदय में बसा उनका मकान
मकड़ियों, तिलचट्टों का बन गया अड्डा

मैं कार का शीशा उतारकर निहार रहा हूँ अपना घर
इतवार की दुपहर है ये सड़क सुनसान है
लोग अपने घरों में आराम कर रहे हैं
मुझे ख़ुशी है कि किसी ने मुझे देखा नहीं
और शीशा चढ़ाकर मैंने कार रिवर्स कर ली
इस घर में घुस पाने की हिम्मत मुझमे जाने कब आये?

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