शनिवार, 14 जुलाई 2018

आओ, बोलें, मिलजुल लब खोलें.



उनकी हर इक बात के
अर्थ हैं कुछ और
बड़े साधारण से शब्द हैं
कोई गोला-बारूद या खंज़र नहीं छिपा है इनमें
लेकिन एक चीज़ पेवस्त है साथी 
जिसे हम नफरत कहते हैं
और जिस नफरत के बलबूते
खड़ा होता जा रहा है एक साम्राज्य
देखते-देखते....
बाल की खाल निकालना
हर किसी को नहीं आता
अमूमन लोग समझना नहीं चाहते
और वही अर्थ ग्रहण करते हैं
जो कि होना चाहिए था
लेकिन ऐसा नहीं है दोस्त
ये कोड हैं, कोई साधारण बात नहीं
हर बात के कई निहितार्थ हैं
अब वक्त आ गया है
इन बड़ी-बड़ी बातों को डिकोड करने का
क्योंकि उनमें-हममें जो फर्क है
वह सिर्फ इतना है कि
वे खोजते रहते हैं सिर्फ बुराइयां
और हम नज़र-अंदाज़ करते जाते हैं बुराइयां
कि सच और अच्छाई को साबित क्या करना
लेकिन हम गलत साबित हुए जा रहे हैं
देखो, लांछनों के कचरे फेंके जा रहे हम पर
ढेरों तले दब जायेंगे इक दिन यूं ही खामोश रहे तो
आओ, बोलें, मिलजुल लब खोलें.

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