रविवार, 1 जुलाई 2018

ओ नादान बच्चियों!


लडकी जबसे होश संभालती है
तभी से एक डर उसके साथ चलता है
हो सकता है अचानक कोई यौन हमला
कहीं भी
कभी भी 
घूरती निगाहों के एक्सरे से बचती-बचाती
गुजारती रहती है उम्र के रास्ते
लेकिन उन बच्चियों का क्या हो
जिनके नन्हे से तन-मन को
होश सम्भालने से पहले ही
कोई दरिंदा
कोई भेड़िया
नोच-खसोट के
कर देता है लहुलुहान
ऐसे पशुओं से कैसे हो हिफाजत
ओ मेरी नन्ही बच्ची
हम समाज के तमाम
तथाकथित सुलझे हुए लोग
बहुत शर्मशार हैं
कि अभी भी नहीं हुए सभ्य
क्षमा करना हमें
ओ नादान बच्चियों!

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