गुरुवार, 23 जून 2011


 

 पढ़ रहा हूँ अखिलेश की किताब 'मकबूल' 
जैसे देख रहा हूँ हुसैन के घोड़े
जैसे देख रहा हूँ हुसैन की सफ़ेद दाढ़ी
जैसे देख रहा हूँ हुसैन की लम्बी उन्गलिओं में सजा ब्रश
जैसे देख रहा हूँ क़तर में जलावतन हुसैन
...
जैसे देख रहा देवी देवताओं के बीच हुसैन
जैसे देख रहा हूँ त्रिशूल से फाड़ी जाती
और मशाल में जलती पेंटिंग्स....

गुरुवार, 9 जून 2011

धरना प्रदर्शन











राज-मैदान मेँ
राजा की मर्ज़ी बिना
व्यवस्था के ख़िलाफ़
झुनझुने बजने लगे
आ जुटे तमाशबीन

झुनझुनोँ का शोर
भाया नहीँ
राजा के चमचोँ को
आनन-फानन
राजा की फौज आ गई

झुनझुने तोड़े जाने लगे
बजाने वाले भागे
बजवाने वाले भागे
तमाशबीनोँ  घायल हुए

तमाशबीनोँ को
ताली बजाने के सिवा 
आता न था कुछ
तमाशबीन आदतन
पाला बदल
करने लगे
राजा का गुणगान...
समझे श्रीमान !

शुक्रवार, 3 जून 2011

संकेत का केशव तिवारी अंक













बिना किसी लालच,
दबाव और भय के
एकदम चुपचाप
रिलीजियसली
करता अपने काम
और फिर भी मुझे
नहीँ मिलती पहचान
जबकि वो बिना कुछ किए-धरे ही
पाता अच्छे कामगार का ईनाम
क्योँकि उसमेँ है
आत्मप्रशंसा की कला
विज्ञापन के दौर मेँ
खराब माल बेच लेना
कोई उससे सीखे...

बुधवार, 1 जून 2011

कैसे बने बात

अमृता   शेरगिल 









एक देखता राह
एक व्यस्त दिन रात
एक बाँधता गिरह
एक खोलता गाँठ
एक चाहता मान
एक खुद परेशान
दोनो जैसे नदी के दो पाट
कैसे बने बात...

कई चाँद थे सरे आसमां : अनुरोध शर्मा

कुमार मुकुल की वाल से एक ज़रूरी पोस्ट : अनुरोध शर्मा पहले पांच पन्ने पढ़ते हैं तो लगता है क्या ही खूब किताब है... बेहद शानदार। उपन्यास की मुख्...