सोमवार, 29 जनवरी 2018

कमबख्त दिल को चैन नहीं किसी तरह



टीवी से दूर भागा मैं
यह आसान तो नहीं था 
क्योंकि सिर्फ
एक मैं ही तो नहीं था दर्शक पूरे परिवार में
फिर भी मेरे लिए सभी ने किया त्याग
छोड़ दिया टीवी देखना
कि सिवाय सिरदर्द के कोई न्यूज़ नहीं रहती
सीरियल्स भी अब वाहियात आते हैं
टीवी के चक्कर में अखबार भी
बिन खुले ही स्टोर पहुँच जाता है कभी-कभी
मेरे लिए घर में अन्य सदस्यों ने
बना ली एक सी राय
कि मुखिया टीवी देखकर गुमसुम से
बैठे रह जाते हैं जैसे कोई झटका लगा हो
शायद यही कारण हो कि
रक्तदाब और शुगर नियंत्रण में नहीं हो पा रहा हो
टीवी से दूर भागा मैं
लेकिन चिंताएं अपनी जगह रहीं यथावत
टीवी जैसा मर्ज़ सोशल साइट्स में भी बरकरार है
हर जगह आधी-अधूरी सूचनाएं
हर जगह अपने-अपने अलहदा चूल्हे
हर जगह अनबन, तनातनी
हर जगह अपनी श्रेष्ठता के भाव
हर जगह प्रेम का दिखावा और खूब-खूब नफरतें
अख़बार, पत्रिकाएं ही नहीं अड़ोसी-पड़ोसी भी
किसी साज़िश में मुब्तिला हों जैसे
माथे पर सलवटें ऐसी कि हटाए न हटें
दिमाग की नसें ऐसी कि अब फटीं कि तब
अन्फ्रेंड और ब्लाक करने का हुनर न हो तो
तनाव बढ़ता है, और बढ़ता जाता है...
ऐसे वाहियात समय में दोस्तों
हम जी रहे हैं ये क्या कम है
चंद हमखयाल हैं तभी तो दम है..................

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