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Sunday, April 30, 2017

उर्दू का झुनझुना

झुनझुना बजा
उर्दू... उर्दू ...
मुस्लिम मतदाता झूम उट्ठे
जैसे उर्दू न होती
तो दीन न होता
ईमान न होता
रसूल न होते
कुरआन न होता
जाने कितने मुसलमान
नहीं जानते उर्दू-अरबी में भेद
उर्दू अखबार का टुकड़ा
ज़मीन पर फेंका मिल जाए अगर
तो चूम लेते हैं उठा कर
आँखों से लगा लेते हैं
और रख देते हैं अहतियात से
किसी साफ़-सुथरी जगह पर
भले से उस अख़बार में
छपी हो सनी लियोनी की तस्वीरें

झुनझुना फिर-फिर बजा
उर्दू...उर्दू...
बौखला गये तथाकथित राष्ट्र-भक्त
हिन्दुस्थान को पाकिस्तान नहीं बनने देंगे
उर्दू उत्थान की बात करने वाली सरकारें
गिरती गईं धडाधड

उर्दू यानी के आसिफ की मुगले-आज़म
उर्दू यानी जगजीत सिंह की ग़ज़लें
उर्दू यानी शराब, साकी, मैखाने की शायरी
उर्दू यानी तवायफें, मुजरा, कोठे
उर्दू यानी लज़ीज़ मटन-बिरयानी
उर्दू यानी ख्वातीनो-हजरात वाले अनाउंसर
इससे ज्यादा उर्दू उन्हें बर्दाश्त नहीं

झुनझुना बजता रहा
उर्दू...उर्दू...
अपने बच्चों को मुसलमान
नहीं पढाते अब उर्दू
कोई हाफ़िज़-मौलाना बनाना है क्या?
मस्जिदों के पम्पलेट छपने लगे हिंदी में
शादी-कार्ड अंग्रेजी-हिंदी में
मस्जिद-मज़ार के मासिक आय-व्यय का हिसाब हिंदी में
और उर्दू जिन्दा रही सिर्फ चुनावी घोषणा-पत्रों में
दंगों में किसी खाद की तरह काम आती रही उर्दू
मुसलमान उर्दू को खुद से चिपकाए रहे
उर्दू मुसलमानों से दूर होती गई.....

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