Total Pageviews
Wednesday, January 25, 2012
sahity festival
मुझे अजीब लगता है
ये सुनकर
कि पांच सितारा होटलों में हो रहा है
दुनिया भर के साहित्यकारों का सम्मलेन
क्या आप को भी अजीब नहीं लगता
कि साहित्यकार लिखने के बल पर
पी रहे हैं मिनरल वाटर
डकार रहे विदेशी शराब
कि जिनके कथा या उपन्यास पात्र
मीलों दूर से ढोकर ला रहे पानी
या गटर के पास बिछावन लगाकर
बिता रहे ज़िन्दगी के पल-छिन
टी वी पर दिखलाई जा रही तस्वीरें
कार्यक्रम में शामिल साहित्यकारों की
खाए-पिए अघाए साहित्यकारों की तस्वीरें
आधुनिक वेश-भूषा में खूबसूरत साहित्यकारों के बीच
मैं बाबा नागार्जुन को खोज रहा हूँ
मैं मुंशी प्रेमचंद को खोज रहा हूँ
मैं त्रिलोचन को खोज रहा हूँ
और साहित्यकारों के बारे में
अपने सीमित ज्ञान को
कोस रहा हूँ.........
Tuesday, January 24, 2012
vote do...
हम हैं चोर-उचक्के
उनकी तरह डकैत नहीं
हम हैं उठाईगीरे
उनकी तरह लुटेरे नहीं
हम हैं चक्कूबाज़ ओनली
उनकी तरह हत्यारे नहीं
अब तो आप समझ गए होंगे
कि राजनीति के मैंदान के
कितने कच्चे खिलाड़ी हैं हम
कितने मासूम हैं हम
पुलिस थाना में रसूख के कारण
हमारा कोई अपराधी रिकार्ड भी नही
क्या अब भी आप हमें वोट नहीं देंगे...?
Thursday, January 19, 2012
-कोड ऑफ़ कंडक्ट-
-कोड ऑफ़ कंडक्ट-
वो सिंह है
वो त्रिपाठी है
वो श्रीवास्तव है
उनसे मजदूरों जैसा
न करो बर्ताव
उनसे न लो टेढ़े-मेढ़े
मेहनत वाले काम
उनसे बात करो तो
अदब से
उन्हें पुकारो तो
उनके नाम के साथ
लगावो 'जी'
मसलन ---
'सिंह जी' 'त्रिपाठी जी' 'श्रीवास्तव जी'
बाकी कामो के लिए तो हैं ही
अपने पास
बेचू, सोमारू, मंगल, गरीबा...
आखिर किसलिए भर्ती किया गया है इन्हें !
वो सिंह है
वो त्रिपाठी है
वो श्रीवास्तव है
उनसे मजदूरों जैसा
न करो बर्ताव
उनसे न लो टेढ़े-मेढ़े
मेहनत वाले काम
उनसे बात करो तो
अदब से
उन्हें पुकारो तो
उनके नाम के साथ
लगावो 'जी'
मसलन ---
'सिंह जी' 'त्रिपाठी जी' 'श्रीवास्तव जी'
बाकी कामो के लिए तो हैं ही
अपने पास
बेचू, सोमारू, मंगल, गरीबा...
आखिर किसलिए भर्ती किया गया है इन्हें !
Sunday, January 15, 2012
Wednesday, January 11, 2012
मत ढाको !
ढकी जा रही है
सैकड़ों हाथी की मूर्तियाँ
सरकारी काम जो है
उधर शीतलहरी में
बिना पर्याप्त कपड़ों में
ठिठुर कर मर गए
कई ग़रीब आदमी
जो शायद वोटर भी होते
लोक-तंत्र के ....
Monday, January 2, 2012
ghazal by noor muhammad noor
नूर मुहम्मद नूर ने नए साल २०१२ में अपनी एक अप्रकाशित ग़ज़ल भेजी.
मैं अपने मित्रों में बांटना चाह रहा हूँ. ये ग़ज़ल नूर ने लगभग उन्नीस साल पहले लिखी थी. देश में स्तिथियाँ आज भी वही हैं..कुछ भी नहीं बदला.....
मुहब्बत सिफार क़त्लो-गारत जियादा, अजीयत हिकारत वगैरा वगैरा
यही इस बरस भी कमाएंगे दौलत ये नफ़रत ये दहशत वगैरा वगैरा
नई होगी सूरत नई होगी मूरत नई गर्दो खू में नहाएगी आफत
नए साल में भी यही सब तो होगा ये ज़ुल्मत ये दशत वगैरा वगैरा
वही होगी ग़ुरबत वही होगी लानत वही हुक्मरा हाकिमो की हुकूमत
वही सिरफिरों की अदालत सखावत अदावत नसीहत वगैरा वगैरा
वही ज़ख्म होंगे वही दर्द होंगे मुसीबत के मारे हुए फर्द होंगे
न होगी न होगी कहीं भी तो शफ़क़त मुहब्बत मुरव्वत वगैरा वगैरा
नई जिल्लतों की भी बरसात होगी फजीहत से हरदम मुलाक़ात होगी
बिकेगी वही फिर टके सेर उल्फत ये इशमत वो इज्ज़त वगैरा वगैरा
सुकून सोचते हैं अमन ढूढ़ते हैं जहां गुल ही गुल वो चमन ढूंढते हैं
कहाँ इतनी फुर्सत की सोचें अलग से ये दोज़ख ये जन्नत वगैरा वगैरा
अदब के रगों में सियाही है जब तक उमीदों की शम्मा भी रौशन तभी तक
चले कोई आंधी उठे कोई तूफ़ान या दहशत या ताक़त वगैरा वगैरा
यही सब जो चलता रहा हर बरस तो तय है फिर जंग होकर रहेगी
सरे आम चरों तरफ कोना कोना बगावत क़यामत वगैरा वगैरा
मिया 'नूर' शाईर हो तुम भी ग़ज़ल के मरे जा रहे क्यों हो मारे अदब के
बताओ भी किस काम आएगी अजमत ये इज्ज़त ये शोहरत वगैरा वगैरा
मैं अपने मित्रों में बांटना चाह रहा हूँ. ये ग़ज़ल नूर ने लगभग उन्नीस साल पहले लिखी थी. देश में स्तिथियाँ आज भी वही हैं..कुछ भी नहीं बदला.....
मुहब्बत सिफार क़त्लो-गारत जियादा, अजीयत हिकारत वगैरा वगैरा
यही इस बरस भी कमाएंगे दौलत ये नफ़रत ये दहशत वगैरा वगैरा
नई होगी सूरत नई होगी मूरत नई गर्दो खू में नहाएगी आफत
नए साल में भी यही सब तो होगा ये ज़ुल्मत ये दशत वगैरा वगैरा
वही होगी ग़ुरबत वही होगी लानत वही हुक्मरा हाकिमो की हुकूमत
वही सिरफिरों की अदालत सखावत अदावत नसीहत वगैरा वगैरा
वही ज़ख्म होंगे वही दर्द होंगे मुसीबत के मारे हुए फर्द होंगे
न होगी न होगी कहीं भी तो शफ़क़त मुहब्बत मुरव्वत वगैरा वगैरा
नई जिल्लतों की भी बरसात होगी फजीहत से हरदम मुलाक़ात होगी
बिकेगी वही फिर टके सेर उल्फत ये इशमत वो इज्ज़त वगैरा वगैरा
सुकून सोचते हैं अमन ढूढ़ते हैं जहां गुल ही गुल वो चमन ढूंढते हैं
कहाँ इतनी फुर्सत की सोचें अलग से ये दोज़ख ये जन्नत वगैरा वगैरा
अदब के रगों में सियाही है जब तक उमीदों की शम्मा भी रौशन तभी तक
चले कोई आंधी उठे कोई तूफ़ान या दहशत या ताक़त वगैरा वगैरा
यही सब जो चलता रहा हर बरस तो तय है फिर जंग होकर रहेगी
सरे आम चरों तरफ कोना कोना बगावत क़यामत वगैरा वगैरा
मिया 'नूर' शाईर हो तुम भी ग़ज़ल के मरे जा रहे क्यों हो मारे अदब के
बताओ भी किस काम आएगी अजमत ये इज्ज़त ये शोहरत वगैरा वगैरा
Subscribe to:
Posts (Atom)
-
बिभूति कुमार झा Anwar Suhail अनवर सुहैल साहेब की लिखी कहानी संग्रह "गहरी जड़ें" पढ़कर अभी समाप्त किया है। बहुत ही सार्थ...
-
आईआईटी खड़गपुर यंग इनोवेटर प्रोग्राम के पहले दौर के लिए आवेदन स्वीकार कर रहा है। पंजीकरण की अंतिम तिथि 12 दिसंबर, 2024 है। यह कार्यक्रम का ...
-
साक्षात्कार कर्ता नित्यानंद गायेन के साथ अनवर सुहैल अनवर सुहैल से नित्यानंद गायेन की बातचीत कवि / उपन्यासकार एवं संपादक के तौर प...