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Friday, August 31, 2012

कोयला


बहुत काला है ये कोयला
कालापन इसकी खूबसूरती है
कोयला यदि गोरा हो जाए तो
पाए न एक भी खरीदार
कोयला जब तक काला है
तभी तक है उसकी कीमत
और जलकर देखो कैसा सुर्ख लाल हो जाता है
इतना लाल! कि आँखें फ़ैल जाएँ
इतना लाल! कि आंच से रगों में खून और तेज़ी से दौड़ने लगे
इतना लाल! कि जगमगा जाए सारी सृष्टि
मुझे फख्र है कि मैं धरती के गर्भ से
तमाम खतरे उठा कर, निकालता हूँ कोयला
मुझे फख्र है कि मेरी मेहनत से
भागता है अंधियारा संसार का
मुझे फख्र है कि मेरे पसीने कि बूँदें
परावर्तित करती हैं सहस्रों प्रकाश पुंज
खदान से निकला हूँ
चेहरा देख हंसो मत मुझ-पर
ये कालिख नही पुती है भाई
ये तो हमारा तिलक है...श्रम-तिलक
कोयला खनिकों का श्रम-तिलक!!!

Wednesday, August 29, 2012

झख मार रहा हूँ


कैसे बताऊँ क्या कर रहा हूँ
कह दूँ कि झख मार रहा हूँ
हमेशा तो होते नही बड़े काम
हमेशा तो मिलते नही धांसू आइडियाज़
बैठा हो जब अपने अन्दर एक आलोचक, एक समीक्षक
ऐसे में मुश्किल होता है करना कोई कच्चा काम
पक्के काम कि तलाश में कच्चा छूट जाता है
बदले में माथे पर चिंता कि रेखाएं बढ़ जाती हैं...

Thursday, August 16, 2012

क्रान्ति या भ्रान्ति


क्रान्ति या भ्रान्ति मजमा जुटाना
बहुत आसान है
क्योंकि मजमे का
कोई मज़हब नही होता
कोई जात नही होती
कोई विचारधारा नही होती
मजमा तो जूता लेता है मदारी
बजाकर डुग-डुगी, डमरू
नचाकर बन्दर-भालू
दिखाकर बाजीगिरी
मजमा होता है सिर्फ bheed
मजमा पैदा नही करता क्रान्ति
मजमे से बढ़ती है भ्रान्ति
मजमा अकारण खुश होकर हंसने लगता है
मजमा तालियाँ पीटने का अभ्यस्त होता है
मजमे के पास नही होता दिल-दिमाग
मजमे का अपना कोई होता नही चरित्र
मजमे को देख किसी क्रान्ति का आंकलन मत कर लेना दोस्त
मजमा बड़ी आसानी से बिखर जाता है
मजमे में नही होती प्रतिरोध की क्षमता
मजमे में नही होती हिम्मत
नही होती मजमे में
एक मुट्ठी में तब्दील होने की ख्वाहिश
एक नारे में बदलने की आकांक्षा
एक निजाम बदलने की ताक़त....

Friday, August 3, 2012

हर दिन हर पल

हर दिन हर पल
कुछ न कर पाने के
बहाने खोजना
हर दिन हर पल
कुछ न कुछ हाथ से
छूट जाने का गम मनाना
हर दिन हर पल
कल से सब कुछ
ठीक कर लिए जाने के
खुद से वादे करना
यही तो हो रहा है मेरे साथ
क्या आप भी इसी बीमारी से ग्रस्त हैं...?
वो आ रहे हैं
लश्कर फौज लेकर
वो आ रहे हैं
बख्तरबंद गाड़ियों की आड़ लेकर
वो आ रहे हैं
लड़ाकू विमानों में छुपकर
वो आ रहे हैं
संबिधान और कानून का सहारा लेकर
इतनी तैयारिओं के बाद भी
अपनी भूखी नंगी बेबस प्रजा के गुस्से से
वो कितने भयभीत हैं ......

gumshuda-chehre


'gumshuda-chehre' mera pehla kavita-sangrah hai jise maine apni hand-writing aur self illustration se chhapwaya tha. ab mere paas ek hi prati bachi hai...