उड़ रही है धूल चारों ओर
छा रहा धुंधलका मटमैली शाम का
छोटे-छोटे कीड़े घुसना चाहते आँखों में
ओंठ प्यास से पपडिया गए हैं
चेहरे की चमड़ी खिंची जा रही है
छींक अब आई की तब
कलेजा हलक को आ रहा है
दिल है कि बेतरतीब धड़क रहा है
साँसे हफ़नी में बदल गई हैं
बेबस, लाचार, मजबूर, बेदम
और ऐसे हालात में
हांके जा रहे हम
किसी रेवड़ की तरह...
वे वर्दियों में लैस हैं
उनके हाथों में बंदूकें हैं
उनकी आँखों में खून है
उनके चेहरे बेशिकन हैं
उनके खौफनाक इरादों से
वाकिफ हैं सभी...
ये वर्दियां किसी की भी हो सकती हैं
ये भारी बूट किसी के भी हो सकते हैं
ये बंदूकें किसी की भी हो सकती हैं
ये खौफनाक चेहरे किसी के भी हो सकते हैं
हाँ...रेवड़ में हम ही मिलते हैं
आँखों में मौत का परछाईं लिए
दोनों हाथ उठाये
एक साथ हंकाले जाते हुए
किसी रेवड़ की तरह...
छा रहा धुंधलका मटमैली शाम का
छोटे-छोटे कीड़े घुसना चाहते आँखों में
ओंठ प्यास से पपडिया गए हैं
चेहरे की चमड़ी खिंची जा रही है
छींक अब आई की तब
कलेजा हलक को आ रहा है
दिल है कि बेतरतीब धड़क रहा है
साँसे हफ़नी में बदल गई हैं
बेबस, लाचार, मजबूर, बेदम
और ऐसे हालात में
हांके जा रहे हम
किसी रेवड़ की तरह...
वे वर्दियों में लैस हैं
उनके हाथों में बंदूकें हैं
उनकी आँखों में खून है
उनके चेहरे बेशिकन हैं
उनके खौफनाक इरादों से
वाकिफ हैं सभी...
ये वर्दियां किसी की भी हो सकती हैं
ये भारी बूट किसी के भी हो सकते हैं
ये बंदूकें किसी की भी हो सकती हैं
ये खौफनाक चेहरे किसी के भी हो सकते हैं
हाँ...रेवड़ में हम ही मिलते हैं
आँखों में मौत का परछाईं लिए
दोनों हाथ उठाये
एक साथ हंकाले जाते हुए
किसी रेवड़ की तरह...
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