मंगलवार, 10 सितंबर 2013

एक बार फिर

एक बार फिर 
इकट्ठा हो रही वही ताकतें 

एक बार फिर 
सज रहे वैसे ही मंच 

एक बार फिर 
जुट रही भीड़
कुछ पा जाने की आस में
              भूखे-नंगों की 

एक बार फिर 
सुनाई दे रहीं,   
        वही ध्वंसात्मक  धुनें 

एक बार फिर 
गूँज रही फ़ौजी जूतों की थाप  

एक बार फिर 
थिरक रहे दंगाइयों, आतंकियों के पाँव 

एक बार फिर 
उठ रही लपटें
धुए से काला हो गया आकाश 

एक बार  फिर
गुम हुए जा रहे
शब्दकोष से अच्छे प्यारे शब्द 

एक बार फिर 
कवि निराश है, उदास है, हताश है...

3 टिप्‍पणियां:

कई चाँद थे सरे आसमां : अनुरोध शर्मा

कुमार मुकुल की वाल से एक ज़रूरी पोस्ट : अनुरोध शर्मा पहले पांच पन्ने पढ़ते हैं तो लगता है क्या ही खूब किताब है... बेहद शानदार। उपन्यास की मुख्...