बस्तर जंक्शन के संचालक पत्रकार मुकेश चंद्राकर की जघन्य हत्या
मुकेश चंद्रकर
यह जो तुम बड़ी बुलंदी से लड़ रहे थे
यह लड़ाई तुम्हारी नहीं थी
तुम हर ज़ोर जुल्म को अपने ऊपर
मान लेते थे आक्रमण और बेजुबानों को
देते थे अपनी आवाज़ कि सिर्फ़
तुम ही पहचाने जाते थे और बेशक
क़त्ल भी तुम्हारा ही हुआ
मुकेश चंद्रकर
पहचान लिए जाने का खतरा उठाकर
तुम लड़ते रहे दूसरों की लड़ाई
तुम्हारी शहादत भुला दी जायेगी
कि संसार दोगले लोगों से
अटा पड़ा बजबजा रहा है साथी
तुम्हारी शहादत को नम आँखों से सलाम।।।
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