गुरुवार, 6 फ़रवरी 2025

पुख़्ता पहचान की तलाश में 'पहचान'

---------------------सतीश छिम्पा ---------------------------

 (एक अद्भुत रचना वह है जो आपको अपने साथ रात भर जगाए रखती है। इस हवाले से 'पहचान' अद्भुत है। इसे पढ़ते हुए मैं एक पूरी रात जागा हूंँ।)

इस घोर फासिस्ट समय में जब व्यक्ति की पहचान उसके अवदान, विचार या देश, लोक के प्रति उसकी संवेदनाओं की बजाए उसका धर्म हो चुका है तब कहीं न कहीं रचनाकारों के भी नकाब उतरने लगे हैं। लोकपक्षधर रचनाकार की यही पहचान है कि वह अपने समय और स्थितियों का पूरी ईमानदारी के साथ रचाव करे। अनवर सुहैल ने इस दृष्टि से अद्भुत रचाव किया है। 'पहचान' व्यक्ति की उस पहचान की तलाश है जो हकीकत है, समकालीन समाज या दुनिया की दी हुई नहीं है। युनुस इसकी तलाश में भीतर बाहर भटकता रहता है। उसका भाई सलीम भी भटका। वो भटका और गुजरात दंगों में ज़िंदा जला दिया गया। सलीम के पास विवेक नहीं है, वो अपरिपक्व है। दिशाहीन आक्रोश और उफ़ान उसको बेचैन किए रहते। अपनी आपा का किसी फलवाले के साथ भाग जाना सलीम जैसे तारक्कीपसंद व्यक्ति को उस दिशा में धकेल देता है जहां जीवन सेकेंडरी है, वो कट्टर हो जाता है। एक अलग तरह का पार्टीशन उसके विचारों में होता है और उसकी पोशाक सलवार, कुर्ता और टोपी स्थाई बन जाती है। यह उसकी दुनियावी पहचान बन जाती है और उसकी यही पहचान गुजरात दंगों में उसकी हत्या का कारण बनती है। उसे ज़िंदा जला दिया जाता है।
अनवर सुहैल हर उस मानव द्रोही विचार के प्रतिरोध में हैं जो मानव और जीवन को दोयम दर्जे पर रखते हैं। वे जीवन की उज्जवलता को स्थापित करने वाले रचनाकार है। 'पहचान' उनके विचारों का प्रतिबिंब है। यह उपन्यास पहले राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित हुआ था। अब यह न्यू वर्ल्ड पब्लिकेशन से आया है। यह अद्भुत उपन्यास है जिसे पढ़ा जाना चाहिए।
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